• भारत का दूसरा सबसे बड़ा मगरमच्छ संरक्षण केन्द्र, कोटमी सोनार का “क्रोकोडायल पार्क” • गांव के बाबाजी की एक आवाज में ये मगरमच्छ दौड़े चले आते है : लेखक/साहित्यकार डॉ लोकेश शरण
बिलासपुर। भारत का दूसरा सबसे बड़ा तथा छत्तीसगढ राज्य का पहला ‘क्रोकोडायल पार्क’ (मगरमच्छ संरक्षण केन्द्र)- जांजगीर चांपा जिले के अकलतरा ब्लाक के कोटमी सोनार गांव में अवस्थित है। देश का सबसे बड़ा मगरमच्छ संरक्षण केन्द्र-चेन्नई से पुडुचेरी जाने वाले मार्ग पर महाबलीपुरम के आसपास अवस्थित है। वर्षो पूर्व मुझे उस केन्द्र को देखने का अवसर मिला था। अभी हाल ही कोटमी सोनार के मगरमच्छ संरक्षण केन्द्र की जानकारी मिली। वन विभाग की देखरेख में इसका संचालन होता है। सोंचा यहां भी घूम ही लूं। बिलासपुर जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी पर रायगढ जाने वाली नेशनल हाइवे से एक शाखा सड़क कोटमी सोनार की ओर जाती है।
इस पार्क को ख्याति दिलाने में कोटमी सोनार गांव के 85 वर्षीय वयोवृद्ध बाबाजी सीताराम वैष्णव का महत्वपूर्ण योगदान है। बताया गया कि 18 वर्ष पूर्व बाबाजी प्रतिदिन की तरह अपने गांव के ‘जोगिया तालाब’ में स्नान करने गए थे तभी घात लगाकर बैठे एक मगरमच्छ ने उनका बांया हाथ अपने जबड़े में जकड़ लिया और उन्हें गहरे पानी की ओर ले जाने लगा। तभी मानो किसी अदृश्य शक्ति ने उनमें साहस का संचार किया। उन्होंने पूरी ताकत से अपने दाहिने हाथ की उंगलियां मगरमच्छ के आंखों में धंसा दी जिसके कारण मगरमच्छ ने उन्हें मुक्त तो कर दिया, परन्तु उनका आधा हाथ वह ले भागा। बाबाजी ने बताया कि जैसे-तैसे ग्रामीणों ने बिलासपुर के सिम्स अस्पताल पहुंचाया। तत्कालीन जिलाधिकारी सोनमणी बोरा साहेब की कृपा से उनका लंबे समय तक इलाज चला। इस घटना से पूर्व उनके एक बछड़े को मगरमच्छ खा चुका था। बाद में उस मगरमच्छ को पकड़कर इस विशाल झीलनुमा ‘मुड़ा’ तालाब में छोड़ दिया गया।
मगरमच्छ के हमले में अपना एक हाथ गंवा चुके बाबाजी मगरमच्छों के संरक्षक के रुप में उभरे। मगरमच्छों से उन्होंने दोस्ती कर ली है। प्रतिदिन स्नान ध्यान करके वे अपने घर से पार्क में चले आते है। करीब दो किमी में मजबूत लोहे की जाली से घिरे तालाब का चक्कर लगाकर मगरमच्छों की देखभाल करना उनकी दिनचर्या में शुमार है। मगरमच्छों के साथ उनका दोस्ताना संबंध पिछले लगभग 17 वर्षों से चला आ रहा है। खास बात यह है कि उनकी पुकार पर मगरमच्छ बाड़े तक भागे चले आते है। इस दृश्य को देखने के लिए मेरे आग्रह पर उन्होंने पुकार लगाई। मैंने इस दृश्य की वीडियोग्राफी कर ली। एक खतरनाक व खूंखार कहे जानेवाले मगरमच्छों को बाबाजी की ओर पालतू कुत्ते की तरह आता देख हर कोई रोमांचित था। गत माह महामहिम राज्यपाल द्वारा बाबाजी को सम्मानित भी किया गया। यहां आने वाले पर्यटक बाबाजी से मिलकर ही लौटना चाहते है। उनकी तलाश सबों को रहती है।
दरअसल आसपास के गांवों में मगरमच्छों का आतंक फैला रहता था। ग्रामवासी उनके आतंक से भयभीत रहा करते थे। खासकर बरसात के दिनों में इनका प्रवेश खेत खलिहानों से होता हुआ घनी आबादी के बीच भी होता था। तब उन्हें वन विभाग के सहयोग से पकड़-पकड़ कर इस ‘मुड़ा’ तालाब में छोड़ा जाने लगा। आज इस झीलनुमा तालाब में मगरमच्छों की संख्या 400 से अधिक बताई जाती है। इनके अंडे-बच्चें दिनानुदिन बढ़ तो रहे हैं, परन्तु नर मगरमच्छ अपने बच्चों को भी चट कर जाते है जिससे इनकी संख्या में आशातीत बढ़ोतरी नहीं पाती।
क्रोकोडायल पार्क की स्थापना राज्य सरकार द्वारा वर्ष-2006 में कोटमी सोनार के विशाल ‘मुड़ा’ तालाब को संरक्षित कर करायी गई थी। वन विभाग मगरमच्छों के भोजन की व्यवस्था करता है। आज यह स्थान पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन चुका है।
विभिन्न प्रजातियों के प्रवासी पक्षियों का बसेरा बन चुका यह पार्क उनके लिए बेहद सुरक्षित है। वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफरों में भी यह पार्क लोकप्रिय बताया जाता है। वर्तमान में जैसे-जैसे ठंड बढ़ रही है, वैसे-वैसे प्रवासी पक्षियों की संख्या में भारी बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। यहां कई वाचटावर बने हुए है जहां से झील के बड़े भूभाग का अवलोकन के साथ-साथ फोटोग्राफी का भी आनंद लिया जा सकता है, बशर्ते मौसम साफ और धूप खिली हो।
(लेखक साहित्यकार डॉ. लोकेश शरण की कलम से….)